Rahim Ke Dohe in Hindi: इस लेख पर हमने आपके लिए महान संत और कवि में से एक रहीम दास के दोहे के अद्भुत संग्रह लेकर आए हैं जिसे पढ़कर आप वाकई में इस विशाल और सुंदर जगत को और जानने में सफल हो जाएंगे।
रहीम दास जी का असली नाम खानजादा मिर्जा खान अब्दुल रहीम खान-ए-खान है और वह मुगल बादशाह अकबर के शासन के दौरान 17 दिसंबर 1556 को दिल्ली में पैदा हुए थे और उनका देहांत 1 अक्टूबर 1627 को 70 साल की उम्र में आगरा में हुआ था।
इन 15 में से 15 रहीम दास जी के दोहे को पढ़कर आप वाकई में धन्य हो जाएंगे और भारत के कई सारे क्लास 7 और क्लास 9 के अध्याय में भी अभी भी रहीम के दोहे पढ़ाए जाते हैं।
Rahim Ke Dohe in Hindi – संत रहीम दास जी के दोहे
1. दोनों रहिमन एक से, जों लों बोलत नाहिं. जान परत हैं काक पिक, रितु बसंत के माहिं.
अर्थ: जब तक कोयल और कौवा नहीं बोलते तब तक इनकी पहचान नहीं हो पाती है। क्योंकि वे दोनों एक समान रंग के होते हैं। लेकिन जब वसंत ऋतु आती है तो, कोयल की सुंदर और मधुर आवाज से दोनों का अंतर हम स्पष्ट रूप से जान सकते हैं।
2. वाणी ऐसी बोलिये, मन का आपा खोय। औरन को शीतल करे, आपहु शीतल होय।
अर्थ: इस दोहे के द्वारा रहीम दास जी यह कहते हैं कि हमें हमेशा बोलते समय ऐसे शब्दों का उपयोग करना चाहिए, जिसे सुनने के बाद आपको और दूसरों को शांति और खुशी मिले।
3. समय पाय फल होत है, समय पाय झरी जात. सदा रहे नहिं एक सी, का रहीम पछितात.
अर्थ: इस सुंदर दोहे के द्वारा रहीम दास जी यह कहते हैं कि उपयुक्त समय पर पेड़ पर फल लगता है और झड़ने के समय वह झड़ जाता है। इसका मतलब हमेशा किसी की अवस्था एक जैसी नहीं होती है। इसलिए दुख के समय पछताना नहीं चाहिए या व्यर्थ के समान है।
4. थोथे बादर क्वार के, ज्यों ‘रहीम’ घहरात। धनी पुरुष निर्धन भये, करैं पाछिली बात।
अर्थ: इस दोहे के द्वारा रहीम दास जी यह संदेश देना चाहते हैं कि जिस प्रकार क्वार के महीने में बिना बारिश के बादल गड़गड़ाते हैं। उसी प्रकार जब कोई अमीर आदमी गरीब हो जाता है तो, उसके मन में पिछली बड़ी-बड़ी बातें ही सुनाएं पढ़ती है, जिसका अब कोई मूल्य नहीं होता है।
5. वृक्ष कबहूँ नहीं फल भखैं, नदी न संचै नीर, परमारथ के कारने, साधुन धरा सरीर !
अर्थ: यह अब तक का सबसे बेहतरीन रहीम के दोहे में से एक है। इस दोहे के द्वारा रहीम दास जी कहते हैं कि पेड़ कभी भी अपना फल नहीं खाता और नदी जल को कभी अपने लिए संचित नहीं करती है। उसी प्रकार सज्जन दूसरे लोगों के परोपकार के लिए देह धारण करके जन्म लेते हैं।
6. रहिमन निज मन की व्यथा, मन में राखो गोय। सुनि इठलैहैं लोग सब, बाटि न लैहै कोय।
अर्थ: इस दोहे का अर्थ यह है कि मनुष्य को अपने मन के दुख को अपने मन में ही रखना चाहिए और दूसरों को नहीं बताना चाहिए क्योंकि इस संसार में लोग बस दूसरों के दुखों को देखकर उसका मजाक उड़ाने के लिए तत्पर रहते हैं।
7. बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर। पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर।
अर्थ: इस दोहे का सीधा संदेश क्या है कि सिर्फ बड़े होने से कुछ नहीं होता है। क्योंकि खजूर का पेड़ जो कि इतना बड़ा होता है, पर किसी को उस पेड़ के द्वारा धूप से बचने के लिए न तो छाया मिलती है, ना ही भूख मिटाने के लिए उसका फल।
8. रहिमन वहां न जाइये, जहां कपट को हेत। हम तन ढारत ढेकुली, संचित अपनी खेत।
अर्थ: मनुष्य को उस जगह पर नहीं जाना चाहिए जहां पर उसके खिलाफ साजिश होती हो। क्योंकि कपटी आदमी अपने फायदे के लिए हमारे खून को भी पानी की तरह चूस सकता है।
9. धनि रहीम जलपंक को लघु जिय पियत अघाय, उदधि बडाई कौन है जगत पियासो जाय।
अर्थ: जिस तरह समुद्र के पानी से संसार की प्यास मिटती नहीं और कीचड़ युक्त जल धन्य होता है, क्योंकि उसमें छोटे जीव जंतु भी जल पीकर तृप्त हो जाते हैं, उसी तरह सेवाभाव वाले छोटे लोग ही हमारे लिए अच्छे होते हैं।
10. जैसी परै सो सहि रहै कहि रहीम यह देह, धरती पर हीं परत है सीत घाम और मेह।
अर्थ: रहीम दास जी यह कहते हैं कि हमारा शरीर सभी कष्ट आसानी से सह लेता है, जैसे कि सर्दी, गर्मी और वर्षा पड़ने पर यह सह लेता है। इस वजह से इस शरीर को हमें दूसरों की भलाई के लिए लगाना चाहिए, यही उद्देश्य होना चाहिए।
11. रहिमन विपदा हू भली, जो थोरे दिन होय. हित अनहित या जगत में, जान परत सब कोय.
अर्थ: इस सुंदर दोहे के द्वारा रहीम दास जी कहते हैं कि यदि विपत्ति का समय अच्छा होता है। क्योंकि उस समय हम सबकी विषय में जान सकते हैं, जैसे कि संसार में हमारे हितैषी कौन है और कौन नहीं।
12. रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिए डारि। जहां काम आवे सुई, कहा करे तरवारि।
अर्थ: इस दोहे का संदेश यह है कि कभी भी मनुष्य को बड़ी वस्तु को देखकर छोटी वस्तु को नहीं फेंकना चाहिए। क्योंकि इस संसार में जहा सुई काम में आती है, वहां बड़ी तलवार का क्या काम।
13. रूठे सुजन मनाइए, जो रूठे सौ बार। रहिमन फिरि फिरि पोइए, टूटे मुक्ता हार।
अर्थ: अगर आपका कोई प्रिय आप से रूठ जाता है तो, उसे तुरंत मना लेना चाहिए। क्योंकि हमारे लिए जो भी प्रिय होता है, वह हमारे लिए मोती के समान होना चाहिए। क्योंकि जब मोतियों की माला टूटती है तो, उसे हम सही करते हैं।
14. वरू रहीम कानन भल्यो वास करिय फल भोग, बंधू मध्य धनहीन ह्वै, बसिबो उचित न योग
अर्थ: कविवर रहीम जी कहते हैं कि बिना पैसे के निर्धन होकर बंधु बांधवों के बीच रहना उचित नहीं है। इस वजह से इससे अच्छा तो किसी जंगल में जाकर फल का भोजन करके जीवन जीना चाहिए।
15. जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करी सकत कुसंग. चन्दन विष व्यापे नहीं, लिपटे रहत भुजंग.
अर्थ: अच्छे स्वभाव वाले व्यक्ति के ऊपर बुरे संगति का प्रभाव नहीं पड़ता है, जैसे जब जहरीला सांप चंदन के वृक्ष से लिपटता है तो, उस वृक्ष पर किसी भी तरह का जहरीला प्रभाव नहीं डाल पाता।
अपने काल में जीवन की सुंदरता को बताते हुए रहीम दास जी ने केवल दो या तीन पंक्तियों के द्वारा लोगों तक अपने संदेश पहुंचाने की कोशिश की है। लेकिन Rahim Ke Dohe in Hindi को सिर्फ दो पंक्तियों द्वारा जानना इतना आसान नहीं है। इस वजह से हम ने जितना हो सके उतना आसान तरीके से आपको उनके मतलब समझाने की कोशिश की है। अगर आप को रहीम दास के दोहे पसंद आये है तो, आपके प्यार भरे संदेश को कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं।
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