Tulsidas Ke Dohe in Hindi: तुलसीदास नाम से प्रसिद्ध गोस्वामी तुलसीदास 15 वीं सदी के महान संत और कवि में से एक है और उनका जन्म सोरों शुकरक्षेत्र में हुआ था, वर्तमान में कासगंज, उत्तर प्रदेश।
ब्राह्मण परिवार में पैदा होने वाले तुलसीदास जी ने संस्कृत और अवधी भाषा में कई सारे किताबें लिखी है और उन्होंने संस्कृत रामायण का वर्णन अपने रामचरितमानस में भी किया है।
इसके अलावा कुछ लोगों का कहना है कि वे वाल्मीकि के अवतार थे। इसके अलावा बहुत सारे लोगों का यह भी कहना है कि उन्होंने अपने जीवन में भगवान श्रीराम से भी भेंट की थी। तुलसीदास जी ऐसे कवि थे कि उन्होंने बहुत सारे दोहे लिखने शुरू किए।
उन दोहो के वजह से आज तक बहुत सारे लोगों ने अपना जीवन सफल बनाया है। इस वजह से आज के इस लेख में हम आपको संत तुलसीदास जी के दोहे की लिस्ट प्रदान करने वाले हैं।
Tulsidas Ke Dohe in Hindi – संत तुलसीदास जी के दोहे
1. तुलसी भरोसे राम के, निर्भय हो के सोए। अनहोनी होनी नही, होनी हो सो होए।
अर्थ: संत तुलसीदास जी अपने इस दोहे में कहते हैं कि भगवान पर भरोसा करना चाहिए और डर के बिना शांति से सोना चाहिए। क्योंकि इससे अनहोनी नहीं होती है और कुछ बुरा भी हो जाता है तो, इस बेकार की चिंता और उलझन को छोड़कर मस्त जीना चाहिए, क्योंकि इसे हम रोक नहीं सकते।
2. आवत ही हरषै नहीं, नैनन नहीं सनेह। तुलसी तहां न जाइये, कंचन बरसे मेह।
अर्थ: दोहे के द्वारा गोस्वामी तुलसीदास जी यह संदेश देते हैं कि यदि किसी भी सभा में आप जाते हैं और वहां पर लोगों की दृष्टि में आपके आने का स्नेह नहीं है तो, कभी भी वैसी जगह पर नहीं जाना चाहिए, चाहे व जगह कितनी ही महत्वपूर्ण क्यों ना हो।
3. सहज सुहृद गुर स्वामी सीख, जो न करइ सिर मानि। सो पछिताइ अघाइ उर, अवसि होइ हित हानि।।
अर्थ: किसी भी गुणी गुरु और स्वामी की सीख को यदि कोई सम्मान नहीं देता है और उस सिख को ठुकराता है तो, उस व्यक्ति को हमेशा जीवन भर पछताना पड़ सकता है। और उसके जीवन में बहुत सारी हानि भी होती है। इस वजह से कभी भी किसी भी सच्चे गुरु का अनादर ना करें।
4. सूर समर करनी करहिं कहि न जनावहिं आपु। बिद्यमान रन पाइ रिपु कायर कथहिं प्रतापु।
अर्थ: इस दोहे के द्वारा आप को अनमोल सिख प्राप्त हो सकती है क्योंकि तुलसीदास जी कहते हैं कि बहादुर व्यक्ति अपनी वीरता को युद्ध के मैदान में शत्रु से लड़कर दिखाता है और वही कायर व्यक्ति हमेशा लोगों को अपने बातों से वीरता दिखाने में लगा रहता है।
5. तुलसी मीठे बचन ते, सुख उपजत चहुं ओ। बसीकरन इक मंत्र है, परिहरू बचन कठोर।।
अर्थ: इस सुंदर सी दोहे के द्वारा तुलसीदास जी का कहना है कि जब भी हम मीठी बातें करते हैं तो, वातावरण में खुशहाली आ जाती है और किसी भी वशीकरण मंत्र से व्यक्ति द्वारा बोली गई मीठी वाणी ज्यादा प्रभाव पैदा करती है।
6. सो तनु धरि हरि भजहिं न जे नर । होहिं बिषय रत मंद मंद तर ॥ काँच किरिच बदलें ते लेहीं । कर ते डारि परस मनि देहीं ॥
अर्थ: तुलसीदास जी के इस दोहे का अर्थ यह है कि जो व्यक्ति मनुष्य का शरीर प्राप्त कर भी राम का नाम नहीं लेता है और हमेशा बुरे विषयों में खोए रहता है, वैसे व्यक्ति उस मूर्ख व्यक्ति के समान है, जो पारस मणि को हाथ से फेंक देता है और कांच के टुकडे हाथ में लेता है
7. देत लेत मन संक न धरई। बल अनुमान सदा हित करई। विपति काल कर सतगुन नेहा। श्रुति कह संत मित्र गुन एहा।
अर्थ: इस खूबसूरत दोहे के द्वारा गोस्वामी तुलसीदास जी के मायने यह है कि मित्र से लेन देन के बारे में कभी भी शंका नहीं करनी चाहिए और हमें हमेशा अपनी शक्ति के अनुसार हमारे मित्र से भलाई करनी चाहिए। क्योंकि वेद के अनुसार वही मित्र संकट के समय सौ गुना प्रेम करता है और यही अच्छे मित्र का गुण है।
8. तुलसी देखि सुवेसु भूलहिं मूढ न चतुर नर। सुंदर के किहि पेखु बचन सुधा सम असन अहि।
अर्थ: तुलसीदास जी के इस दोहे का अर्थ यह है कि मूर्ख ही नहीं बल्कि चतुर लोग भी सुंदर वेशभूषा देखकर धोखा खा सकते हैं। क्योंकि मोर की बोली बहुत प्यारी और अमृत जैसी होती है, परंतु मोर सांप का भोजन करता है।
9. दया धर्म का मूल है पाप मूल अभिमान। तुलसी दया न छांड़िए ,जब लग घट में प्राण।
अर्थ: तुलसीदास जी का कहना है कि मनुष्य को कभी भी दया नहीं छोड़नी चाहिए, क्योंकि दया ही धर्म का मूल है। इसी तरह मनुष्य के अंदर का अहंकार सभी पापों की जड़ है। इस वजह से अहंकार को छोड़कर दया को अपनाना चाहिए।
10. खलन्ह हृदयॅ अति ताप विसेसी । जरहिं सदा पर संपत देखी। जहॅ कहॅु निंदासुनहि पराई। हरसहिं मनहुॅ परी निधि पाई।
अर्थ: इस दोहे का अर्थ यह है कि जो व्यक्ति दूसरों को सुखी देखकर जलता है और दूसरों की बुराई सुनकर खुश होता है, जैसे कि उनके रास्ते में गिरा खजाना उन्हें मिल गया हो, वैसे दुर्जन के ह्रदय में अत्याधिक संताप रहता है। इस वजह से कभी भी हमें किसी भी व्यक्ति के प्रति बुरा बर्ताव या फिर सोच नहीं रखनी चाहिए।
11. बिना तेज के पुरुष की अवशि अवज्ञा होय, आगि बुझे ज्यों राख की आप छुवै सब कोय।
अर्थ: इस दोहे के द्वारा तुलसीदास जी का संदेश यह है कि तेज हीन व्यक्ति की बात को कोई भी सम्मान और महत्व नहीं देता है और कभी भी उसके बात का पालन नहीं करते हैं, ठीक वैसे ही जैसे राख की आग बुझ जाती है, तब सभी उसको छूने लगते हैं।
12. सुख हरसहिं जड़ दुख विलखाहीं, दोउ सम धीर धरहिं मन माहीं। धीरज धरहुं विवेक विचारी, छाड़ि सोच सकल हितकारी।
अर्थ: मूर्ख व्यक्ति अपने जीवन में दुख आने पर रोता और बिलखता रहता है और सुख के समय सबसे ज्यादा खुश होता है। लेकिन जबकि धैर्यवान व्यक्ति दुख और सुख दोनों ही समय सामान व्यवस्था में रहता है और कठिन समय में अपने धैर्य को बनाए रखकर कठिनाइयों का डटकर सामना करता है।
13. कोउ नृप होउ हमहिं का हानि, चेरी छाडि अब होब की रानी।
अर्थ: इस दोहे के अंदर बहुत गहराई है, क्योंकि तुलसीदास जी यह कहना चाहते हैं कि कोई भी राजा बन जाए तो, हमें क्या हानि होने वाली है! जैसे कि अब मैं दासी हूं तो नए राजा बनने से क्या मैं दासी से रानी बन जाऊंगी? आसान भाषा में इसका मतलब यह है कि उस व्यक्ति को तब तक फर्क नहीं पड़ता जब तक आंच उस तक नहीं आ जाए और तब उसको विरोध करने की हिम्मत भी नहीं रहती है।
14. रिपु तेजसी अकेल अपि लघु करि गनिअ न ताहु। अजहु देत दुख रवि ससिहि सिर अवसेशित राहु।
अर्थ: इस दोहे का संदेश यह है कि हमें कभी भी बुद्धिमान शत्रु जब अकेला पढ़ जाता है तो, उसे छोटा नहीं आंकना चाहिए। क्योंकि राहु का केवल सिर बच गया था, लेकिन वह आज तक सूर्य और चंद्र को ग्रसित करके दुख देता है।
15. हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता, कहहि सुनहि बहु बिधि सब संता। रामचंन्द्र के चरित सुहाए, कलप कोटि लगि जाहि न गाए।
अर्थ: तुलसीदास जी का यह कहना है कि भगवान हरि अनंत है, उनकी कथा भी अनंत है। सभी संत भगवान को इस तरह से वर्णन करते हैं कि श्री राम के सुंदर चरित्र को करोड़ों युगों में भी ठीक से नहीं प्रकट किया जा सकता।
आशा करता हूं कि आपको यह सभी 15 तुलसीदास जी के दोहे पसंद आए होंगे और यदि आप इन संदेशों को अपने जीवन में अपनाते हैं तो जरुर सफलता हासिल कर पाएंगे। आपको यह सभी Tulsidas Ke Dohe in Hindi कैसे लगे इसके बारे में हमें जरूर बताएं।
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